अप्रैल याने दलित हिस्ट्री मंथ। मूलनिवासी-बहुजन के उत्साह का महीना। आपने महापुरुषों के संघर्षों को याद कर उनकी शिक्षाओं पर अमल करने का महीना। शिक्षा, संगठन और संघर्ष के अलमबरदार राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले, संविधान निर्माता बाबा साहेब भारत रत्न डॉ. भीम राव अंबेदकर के जन्मदिन का महीना। अप्रैल में ही राम नवमी और रमजान। कोई बात नहीं। हमारे महापुरुषों ने जब मूलनिवासी-बहुजनों को मानवता, बराबरी और जातिमुक्त समाज की संकल्पना की शिक्षा दी हुई है, तो राम नवमी और रमजान से क्या दिक्कत ? मेरी समझ में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लेकिन दिक्कत उन्हें हैं। जिन्हें पाखंडवाद के अलावा कुछ और आता ही नहीं। पाखंडवाद के नाम पर ये लोग कितना दमन, अत्याचार 21वीं सदी में भी कर रहे हैं इसका कोई पैमाना ही नहीं। सरकारी स्तर पर राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले-बाबा साहेब के सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पाक्षिक मुहिम का ऐलान होता है। लेकिन कुछ दिनों बाद षडयंत्र के तहत मस्जिदों के बाहर आतंक की दहशत का नगाडा पीट संदेश दिया जाता है कि हुकूमरान जो चाहे कर सकते हैं। कोई रोकने वाला नहीं, टोकने वाला नहीं। किसी ने रोका-रोकी, टोटा-टोकी की तो बुलडोजर चला देंगे। आतंक की नई परिभाषा। बुलडोजर चला भी लेकिन कोई संज्ञान नहीं। क्योंकि लोकतंत्र कुचलने की जिम्मेदारी कारोपोरेटरों के मीडिया हाउस के सुपुर्द। बहाना बनाना आसान। ख़बर की जानकारी ही नहीं। लेकिन सूचना-तकनीक के मौजूदा दौर में ख़बर से कोई अनभिज्ञ रहे। उसे मूर्ख अंधभक्त ही कहा जाएगा। सोशल मीडिया से अदालतें बेख़बर नहीं।
तालिबान से आगे निकलने की होड के अलमबरदार मामा शिवराज सिंह
चौहान ने जिस तरह मुस्लिम के घरों पर बुलडोजर चलाया। बाबा साहेब और उनके लोकतंत्र
के पैरोकार कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं ? बर्दाश्त होना भी नहीं चाहिए। सोशल मीडिया पर
मूलनिवासी-बहुजन समाज को जगाने के लिए, पाखंडवाद का नामो-निशान मिटाने के लिए जिस
तरह कई जुनूनी अंबादेकरवादी सक्रिय हैं। इस सक्रियता की वजह से दमन, अत्याचारों की
ख़बरें सामने आ रही है। सोशल मीडिया पर दमन, अत्याचार की ख़बरों को धडल्ले से
तस्वीरों सहित जगह देने वाले अंबेदकरवादियों को दिल से सलाम। लेकिन राष्ट्रपिता
ज्योतिबा फुले-विश्व विभूषण बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेदकर, मान्यवर साहिब श्री कांशी
राम के संघर्षों के बाद बनी जमीन पर उतर कर भोग-विलास के कुछ दशकों से शौकीन हुए
हमारे नेताओं ने दमन, अत्याचार की इन दिल-दहला देने वाली ख़बरों पर लब सिल लिए।
ताकि इन नेताओं के ऐश्वर्य को कोई आंच न आए। राजस्थान में आदरणीय बहन कुमारी
मायावती के स्वघोषित उत्तराधिकारी आकाश आनंद विश्व समानता दिवस याने 14 अप्रैल को
बाबा साहेब का गुणगान कर रहे अंबेदकरवादियों के मार्च में शामिल जरुर हुए। दिखावे
और इस अहसास के लिए कि आदरणीय बहन मायावती फिलहाल मूलनिवासी-बहुजन समाज का हिस्सा
हैं। बाद का कुछ कहा नहीं जा सकता। बाबा साहेब के जन्मदिन पर यूपी के बहराइच में
जिस तरह से जातिवादी आतंकियों ने बाबा साहेब के अपमान के साथ-साथ मजलूमों पर जुल्म
ढहाया। इसका विरोध करने की रस्म अदायगी भी बहन मायावती को मंजूर नहीं। सोशल मीडिया
चीख-चिल्ला कर कह रहा है कि किस तरह से बाबा साहेब का अपमान ही नहीं। मूलनिवासी-बहुजनों,
हमारी बहन-बेटियों को जातिवादी आतंकियों ने रौंदने की कोशिश की। लेकिन बहन जी चुप
हैं। हमारे दूसरे नेता चुप हैं। समाजवादी मुखिया अखिलेश यादव को यूपी के जंगल राज़
का दूसरा क्राइम सीन तो दिखता है। लेकिन बहराइच में जातिवादी आतंकियों का आतंक
नहीं दिखा।
आतंक की इन घटनाओं के बाद।
निक्कर से पेंट तक पहुंचे पाखंडवादियों के मुखिया मोहन भागवत का अखंड भारत वाला ब्यान
सामने आता है। 8 साल पहले तक भारत पर विकसित होने वाला टैग दुनिया की बडी पंचायत
ने लगाया था। इसी पंचायत ने इस टैग को हटा कर भारत को निकम्मे देशों की लिस्ट में
डाल दिया। लेकिन बेशर्म पाखंडवादियों को कोई परवाह नहीं। उल्टे पाखंडवाद के
सुप्रीमो के दो गैर-जरुरी ब्यान सामने आए। साधु-संतों के बल पर भारत को विश्व गुरु
बनाने और आने वाले डेढ दशक तक अखंड भारत को आपनी आंखों से देखने वाले हास्यास्पद
ब्यान। भारत की 80 फीसद आबादी जब अगले 5 महीनों तक 5 किलो अनाज के लिए हुकूमरानों
पर निर्भर है। ऐसे में पाखँडवादियों के बेअसर सरदार के हास्यास्पद ब्यान की
नेतृत्व की ओर से कोई खिल्ली नहीं। कुछ शर्म महसूस होने के बाद आदरणीय बहन मायावती
ने शनिवार को ट्विटर पर आपनी हाजिरी लगाई। कर्नाटक के कमीशनखोर बीजेपी मंत्री की
आलोचना तक सीमित हाजिरी। मूलनिवासी-बहुजन युवाओं की तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय रह कटाक्ष
की बौछार करने से परे की हाजिरी। इस तरह की हाजिरी से क्या जातिवाद के नए सामने आ रहे
आतंक से पार पाया जा सकता है? बिल्कुल नहीं। ये सोशल मीडिया का युग है। दुनिया में
दक्षिणपंथी हुकूमतों के बावजूद जिस तरह का जिगरेवाला साहस, बेबाकी मूलनिवासी-बहुजन
युवा दिखा रहे हैं। उससे साफ है कि वक्त इन युवाओं का है। इसलिए आदरणीय बहन सुश्री
मायावती को समाज के इन्हीं युवाओं का ग्रुप बना मान्यवर साहिब श्री कांशी राम के
संगठन बहुजन समाज पार्टी का नेतृत्व सौंप देना चाहिए। ये युवा पढे-लिखें है,
जुनूनी और जूझारु भी। समाज को बहुत आगे ले जाने का जज्बा इन युवाओं में है।
मूलनिवासी-बहुजनी इन युवाओं को मैं, तो दिल से सलाम करता हूं। और दावा है, एक दिन
बडे-बडे भी इन युवाओं के आगे झुक जाएंगे।
नमो बुद्धाय, जय भीम, जय
भारत, जय संविधान, जय मूलनिवासी।
-मनोज नैय्यर
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